चाहे औषधि - चिकित्सा या चाहे अन्तरिक्षीय - रॉकेट विज्ञानं सहित अन्य विशुद्ध वैज्ञानिक क्षेत्र हों अथवा न्यायिक एवं शिक्षा व प्रशासनिक व्यवस्था आदि का क्षेत्र लाख असफलताओं के पश्चात् भी कोई भी इन के अस्तित्वों पर किसी भी प्रकार का कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगाता तो फिर ज्योतिष्य को विज्ञानं मानने वालों पर ही क्यों ? लाख असफलताओं या दोषों के बावजूद भी जितना धन उपरोक्त< क्षेत्रों में शोध अथवा सुधारों हेतु व्यय किया जा चुका अथवा किया जा रहा है यदि उसका मात्र लाखवां भाग या कोई भी छोटी सी भी मात्रा की धनराशि भी ज्योतिष्य -विज्ञानं के क्षेत्र में शोध पर व्यय की गयी होती तो शोध निष्कर्षों के आधार पर इसके औचित्य पर प्रश्न उठाने का अधिकार ,प्रश्न उठाने वालों को मिल जाता | आधुनिक युग में अभी तक इस क्षेत्र में जो कुछ हुआ है या हो रहा है , वह सभी अलग - अलग लोगों के व्यक्तिगत प्रयासों-प्रयत्नों का परिणाम है और जब व्यक्तिगत प्रयासों की बात आयेगी तो फिर लगे श्रम , समय और धन की बात भी उठेगी और यहीं स्वार्थों की टकराहट आरंभ होकर सामंजस्य नहीं बैठने देगा| सुना पढ़ा देखा कि बड़ी चुनौतियाँ और पुरस्कार घोषित हो रहे है ! और ऐसा करने वालों में अपने को तथाकथित वैज्ञानिक मानने वाले भी है ,ऐसे - वैसे नहीं आधुनिक शैक्षिक प्रमाण पत्रों वाले ! इन्हें इस क्षेत्र में किसी को चुनौती देने का अधिकार कहाँ से मिला ? यह इस विषय के परीक्षक कैसे हो सकते हैं ? जिस विषय को इन्हों ने पढ़ा ही नहीं सीखा ही नहीं उसके परीक्षक ? हा हा हा हा ! अपने को वैज्ञानिक दृष्टि कोण का बताने वाले इन लोगों ने यदि आगे बढ़ कर स्वयम इस क्षेत्र में शोध का बीडा उठा लिया होता तो शायद यह समाज के प्रति अपने ऋणों के कुछ अंश को चुकता कर पाते | |
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