[[ ए स्टडी इन ज्योतिष्य विज्ञानं ]]
[[ The Natures & Siganificances of Astrologicale Planets ]]
" जातकी - ज्योतिष्य का कार्य- आधार क्या है "?
उत्तर तो मुझे ही देना हैं !वास्तव में '' जातकी- ज्योतिष्य '' का जो कार्य - आधार है , लगभग वही सम्पूर्ण फलित ज्योतिष्य का कार्य-आधार भी है |
उपरोक्त से स्पष्ट है कि जातकी ज्योतिष्य एवं ज्योतिष्य के '' तीन आधार स्तम्भ है , जो क्रमशः" किसी विशिष्ट काल-खंड या समय पर ,यथा ''किसी के जन्म - समय पर '' जन्म-स्थान से सुदूर अन्तरिक्ष में देखने पर किसी पूर्व निर्धारित विन्दु जिसे ज्योतिष्य में '' भचक्र अथवा राशिः - चक्र '' कहा गया है '' , के सापेक्ष नौ [ 9 ] ज्योतिषीय ग्रह जिस -जिस राशिः की सीध में दिखें उस ग्रह को तात्कालिक रूप से उसी राशिः में स्थित मान कर , तथा उस स्थान- विशेष [[ जो यहाँ पर जन्म-स्थान कहा गया है ]] के सटीक ''गणितीय '' पूर्वीय-क्षितिज [[ Horizen ]] पर राशिः- चक्र [12 राशियों के चक्र ] की जो भी राशिः उदित हो रही होती है उसे केन्द्र बना अर्थात आरम्भिक बिन्दु [[ लग्न या Ascendant ]] मान , बारह [ 12 ] विभागों का एक चक्र बना कर ही और इस में '' 9 वों '' ज्योतिष्य ग्रहों की सापेक्षिक स्थिति का , पर्यावरण , वातावरण , समाज तथा व्यक्तियों एवं व्यक्तित्वों पर पड़ने वाले हर संभावित प्रभावों का भूत : वर्तमान : भविष्य के परिपेक्ष्य में आकलन करने पर प्राप्त अन्तिम निष्कर्षों के आधार पर फलित सार कहना ही ' जाताकी - ज्योतिष्य ' का कार्य-आधार है |"
[ 1 ] नौ ( 9 ) ज्योतिषीय ग्रह ,
[ 2 ] बारह ( 12 ) भावों का भाव चक्र जिसमें लग्न प्रथम भाव होता है तथा
[ 3 ] बारह ( 12 ) राशियों का भचक्र या राशिः चक्र ;
किसी भी जन्मांग में किसी भी ग्रह की स्थिति इस प्रकार बताई जाती है ,'' अमुक ग्रह ( ग्रह का नाम ) , अमुक राशिः ( राशिः का नाम ) का हो कर ,जन्म लग्न से अमुक ग्रह ( लग्न से गणना करने पर ''जो भाव क्रमांक '' आवे , लग्न को शामिल करते हुए ) में बैठा है |आईये अब ज्योतिषीय ग्रहों के '' गुण : धर्म और कारकत्व '' के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे ,::---
उपरोक्त अध्ययन से आप को यह तो स्पष्ट हो ही गया होगा कि ज्योतिष्य के अध्ययन में ग्रह ही सर्वोपरि हैं |
अतः आवश्यक है कि यदि :
हम ज्योतिष्य में पारंगत होना चाहते हैं तो सर्वप्रथम हमें ज्योतिषीय ग्रहों सेपरिचित होना पड़ेगा | मात्र परस्पर परिचित होना ही पर्याप्त नही होगा ,
कि आप काल - पटल पर लिखी उनकी हस्तलिपि मात्र ही पढ़ने में सक्षम न हो जायें वरन जब भी आप परस्पर मिलें तो प्रसन्नता पूर्वक आपस में बातें कर सकें 'वे आप से बोलने को सदैव उत्सुक रहें ' तत्पर रहेंक्या ऐसा सम्भव है ? ? ?
आशा है कि अब तक आप के और मेरे बीच एक संवाद- सेतु अवश्य स्थापित हो चुका होगा और आप मेरी शैली से भी परिचित हो कर उस से तादाम्य भी बैठा चुके होंगें , यदि कहीं कोई तथ्य समझ में न आवे , कहीं कोई शंका उठे तो बेहिचक संपर्क करें टिप्पणी बॉक्स है ही !! हाँ गति कुछ धीमी ही रखूंगा , कुछ तो जानते - बूझते हुए और कुछ अपनी अपरिहार्य बाध्यताओं के कारणों से !!
एक सत्य और तथ्य अभी से सहेज लें तो उचित होगा
'' [ १ ]- मेहनत : परिश्रम : लेबर आप को करना है
[ २ ]-और इतने मात्र को पढ़ लेने भर से आप ज्योतिषाचार्य नही बन जायेंगे
[ ३ ]-कुछ भारतीय ज्योतिष्य की कुछ शास्त्रीय ( क्लास्सिकल ) , और कुछ आधुनिक ज्योतिष्य विज्ञानं कि पुस्तकों की भी आवश्यकता पड़ेगी जिनका अध्ययन आप को स्वयम् मेरे इन आलेखों के प्रकाश में करना पड़ेगा , शंका - समाधान करने का भरसक प्रयत्न करूँगा ,
प्रतीक्षा करें तीसरी कड़ी '' ज्योतिष्य -विज्ञान का अध्ययन - 3 " का
क्रमशः