बुधवार, 15 जुलाई 2009

'' ज्योतिष्य -विज्ञानं का अध्ययन - 1 ''


'' ज्योतिष्य -विज्ञान का अध्ययन - 1 ''
[[ ए स्टडी इन ज्योतिष्य विज्ञानं ]]

आज
बहुत दिनोंबाद अन्योनास्ति का काळ - चक्र आप से संबोधित है , इस मध्य
''अन्योनास्ति काळ चक्र को दिए अपने वचन के अनुसार काळ के पटल पर काळचक्र द्वारा लिखा लेखा पढ़ता रहा और उसे भोगता भी रहा ,और आगे अभी और भी भोगने की तैयारी है | "
अन्योनास्ति
ने जो प्रतिकूल पढ़ा उसके निवारण का कोई उपाय कर उसे भोगा जैसा कि वह कालचक्र से [[ अर्थात स्वयं से ]] वचनबद्ध हुआ था | ऐसा क्यों ? ऐसा इस लिए कि मैंने अपने अध्ययन काळ में ज्योतिष्य के बहुत से शास्र्तोक्त कथनों में अपने आप में अथवा दो कथनों को आपस में विरोधाभासी पाया था और संयोगवश ऐसी कुछ ग्रह स्थितियां एवं ग्रह योग . मेरे ही जन्मांग चक्र में ही थीं जिनका विभिन्न विद्वत जन भिन्न-भिन्न फलित बताते रहे ,भोग्य-काल में मैने जो भोग उसे ही सही माना ,क्यों कि अपना भोगा हुआ यथार्थ ही सत्य होता है ,''ज्योतिष्य में तो विशेष रूप से ''||
फलित कथन की अति-सरल पद्धति [] के बाद मैंने इसकी अगली कडियाँ भी ड्राफ्ट के रूप में तैयार कर लीं थीं | इसी बीच ज्योतिष्य शिक्षा के दृष्टि-कोण से एक लेख ''नक्षत्र -1'' कालचक्र पर पोस्ट किया क्यों की इस विषय पर काफी ईमेल मुझे मिले जन सामान्य लोगों के जिस में कई तकनिकी शब्दों की परिभाषा आदि पूछी गयी थी ,तथा ज्योतिष से जुड़ी बहुत सी शंकाएँ थीं, तो बहुतों ने अपना जन्मांग चक्र ही संलग्नक के रूप में ही भेज दिया था | उसी के बाद ही मेरे मस्तिष्क में यह लेख-माला लिखने का विचार आया , क्यों कि मेरा उद्देश्य जन सामान्य को सामान्य जीवन में ज्योतिष्य की व्यवहारिक उपयोगिता और महत्त्व बतलाना है , न कि कोई जादूगरी अथवा चमत्कार का तरीका बतलाना || मैं यह दावा तो नही करता कि इस सीरिज के अध्ययन मात्र से आप एक विशेषज्ञ ज्योतिषी बन ही जायेंगे , हाँ इतना ही आश्वस्त कर सकता हूँ कि अगर आप पूरी रूचि और गंभीरता के साथ इस सीरिज का अध्ययन करेंगे तो कमसे कम कोई ज्योतिष्य के नामपर आप को न तो मूर्ख बना सकेगा और न तो ठग ही पायेगा |
इस के साथ आप संभावनाओं का अनुमान लगा अपना श्रम-समय-धन आदि बचा सकते हैं | यहाँ एक बात जानलें मै '' ज्योतिष्य को संभावनाओं का विज्ञानं कहा करता हूँ '' और वास्तव में इस की यही सही परिभाषा है
इस विषय में आप कितना आगे तक जा सकते हैं यह स्वयं आप पर ही निर्भर करता है | तो आईये आरम्भ करते हैं
'' ज्योतिष्य -विज्ञानं का अध्ययन - 1 ''
[[ ऐ स्टडी इन ज्योतिष्य विज्ञानं ]]


ज्योतिष्य की जताकी पद्धति में यदि कुछ विशेष बिन्दुओं , तथ्यों एवं विवरणों जिनका सम्बन्ध ज्योतिष्य - शास्त्र के मूल सिद्धांतों से है , का गहन एवं विस्तृत एवं गहन अध्ययन कर उन्हें हृदयंगम कर लिया जाए तो मात्र जताकी ही नही फलित ज्योतिष्य की अन्य शाखाओं में भी सटीक फलित कथन सफलता पूर्वक किया जा सकता है ||
मैं अपने इस आलेख में क्रमवार उन बिन्दुओं से आप का परिचय कराऊंगा और उन बिन्दुओं के प्रत्येक पक्ष के महत्त्व को रेखांकित करने का प्रयत्न करूँगा | हाँ मेरी गति कुछ धीमी और शैली ज्यादा रोचक न हो , फ़िर भी मै इसे रोचक बनाने का प्रयत्न करूँगा |
''इस क्रम में प्रथम बिन्दु है ज्योतिषीय ग्रहों का गुण-धर्म || ज्योतिषीय ग्रहों के गुण धर्म बारे में '' ज्योतिष्य -विज्ञानं का अध्ययन - 2'' में पढ़ें ''

इसी क्रम में पाठकों से मेरा अनुरोध है कि वे टिप्पणियों द्वारा अपनी अपेक्षाएं और शंकाए दोनों भेजते रहें जिससे मैं आप की इस लेख माला को आप के लिए ज्यादा उपयोगी बना , इसे आप से और अधिक आत्मीयता से जोड़ सकूँ ||

3 टिप्पणियाँ:

Ravi Prakash ने कहा…

This is first time i saw this blog. I like this. I fully agree with u that Jyotish is not so considered as science. It is very worse condition.

alka mishra ने कहा…

हम भी जानना चाहते हैं इसके बारे में ,अगली कडी कब आयेगी ?

आशीष "अंशुमाली" ने कहा…

अगली कड़ी का इन्तिजार है।

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